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Dilemma of UFBU -  Whether to Fight For Wage Revision or Bank Reforms

 

by

पवन गोयल

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10वें वेतन समझौते के लिए UFBU व IBA के बीच लगभग 2 वर्षों से वार्ता के कई दौर होने के बावजूद कोई प्रगति नहीं होने के कारणों की धुंध अब छंटती जा रही है।

ज्यादातर साथियों का मानना है कि अधिक लेवी लेने के चक्कर में युनियनें वार्ता को लम्बा खिसका रही हैं। कुछ का मानना है कि वार्ता के लिए नेताओं को मिलने वाली सुविधाओं के लिए वार्ता के दौर पे दौर जारी हैं। कुछ यहाँ तक आरोप लगा रहे हैं कि नेता बिके हुए हैं। जितने मुंह उतनी बातें।

वास्तव में UFBU कुछ अलग ही दुविधा में फंसा है। एक तरफ तो उसे वेतन समझौता करवाना है, दूसरी और सरकार के आर्थिक सुधार कार्यक्रम के मुद्दे पर लड़ना है।

UPA सरकार तो आर्थिक सुधार एजेंडे पर ढीली ढाली चल रही थी, किन्तु मोदी सरकार को प्रचंड बहुमत मिलने के पश्चात् परिस्तिथियों ने ऐसा मोड़ लिया कि UFBU के लिए रास्ता जटिल से जटिलतम हो गया।

मोदी सरकार आर्थिक सुधारों पर प्राथमिकता से ही नहीं अत्यंत त्वरित गति से कार्य करने को बेताब है। BJP की मोदी सरकार ने सत्ता सँभालते ही RBI के माध्यम से एक्सिस बैंक के जे पी नायक की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया जिसे बहुत ही अल्प समय में अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया। जे पी नायक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप भी दी है।

 

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सरकार सरकारी बैंकों में अपनी अंशधारिता 50% से घटाने, सरकारी बैंकों का विलय करने, निजी घरानों को अधिक से अधिक बैंकिंग लाइसेंस देने, स्थानीय छोटे बैंक शुरू करने, बैंकों के अनार्जक ऋणों की सख्ताई से वसूलने के स्थान पर उन्हें बेचने, सरकारी बैंकों को "बैंकिंग निवेश कंपनी" के हवाले करने, राष्ट्रीयकरण एक्ट, SBI एक्ट, सब्सिडरी बैंक एक्ट को निरस्त/संशोधित करने, सरकारी बैंकों को कंपनी एक्ट के अंतर्गत लाने, बैंकों में FDI लाने के अनगिनत मामलों पर एक साथ तेजी से कार्य कर रही है। ये सभी मुद्दे ट्रेड युनियनों एवं आम सरकारी बैंक कर्मचारियों/अधिकारियों के हितों पर प्रत्यक्ष कुठाराघात है।

अब UFBU के मुख्य घटक युनियनों के सामने यह गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है की वो वेतन समझौता करवाए या सरकार के आर्थिक सुधार एजेंडे से लड़े। यही है वित्तीय व गैर वित्तीय एजेंडा।अब युनियनों के सामने वित्तिय (वेतन समझौते) से ज्यादा सरकार के गैर वित्तिय ( उक्त वर्णित आर्थिक सुधार कार्यक्रम) से लड़ना ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है हालाँकि वे वेतन समझौते को ऊपर रख कर आर्थिक सुधारों से लड़ना चाहती है जिससे आम कर्मचारी/अधिकारी आन्दोलन से जुड़ा रहे।

UFBU दिल से चाहता तो UPA सरकार के समय अच्छा वेतन समझौता करवा सकता था किन्तु उन्होंने वह मौका गवां दिया। अब मोदी सरकार UFBU/युनियनों से अच्छा मोल-भाव (bargaining) करने की मजबूत स्थिति में है।

इन परिस्थितियों से युनियनें कैसे निपटेंगी यह तो भविष्य के गर्भ में हैं किन्तु आन्दोलन/ लड़ाई बहुत लम्बी चलने वाली है इसमें कोई शक नहीं है।इसी कारण एक दिन की टोकन हड़ताल का आह्वान किया गया है क्योंकि वेतन समझौते पर तो सरकार शायद राज़ी भी हो जाये, गैर वित्तीय मुद्दों पर सरकार पीछे नहीं हटेगी और ट्रेड युनियनें इन पर कभी राज़ी नहीं होगी। टकराव भयंकर होगा।

देखिए आगे होता है क्या?

पवन गोयल
श्रीगंगानगर राजस्थान

Comments by Rajesh Goyal  : I  have read the views of Mr Pawan Goyal on FaceBook number of times and found these to be crisp and to the point.  Recently we have received certain comments and have decided to uploaded the views.   We have found these comments to be appropriate and express the reality on the ground.  

For the benefit of the readers who do not know Hindi, we would like to state here in brief that Mr Pawan has written  about the dilemma being faced by UFBU between the wage revision and political issues (i.e. opposing the bank reforms).   With Modi government wishing to put foot on the accelerator  for bank reforms, the different unions which are part of UFBU are unable to decide as to how to react and counter Modi Government on bank reforms and also keep up to negotiate for honourable wage settlement.

UFBU had a golden opportunity to clinch a reasonably good wage revision during the last phase of previous government (UPA) before the end of 2013, but they lost that opportunity.  Now this stable government is not likely to budge easily.  Therefore, this fight can be a long one.  Lets wait and watch how things take turn in months to come.

 

 

 

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